खानाबदोश/घुमन्तु समाज
Atul Malikram
'घुमन्तु समाज' पहल के बारे में
घुमन्तु समुदाय से अभिप्राय ऐसे व्यक्तियों से है जो किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते बल्कि अपने जीवनयापन के लिए इधर उधर घूमते रहते हैं।
रेनके आयोग (2008) की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में लगभग 1,500 घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ और 198 विमुक्त जनजातियाँ हैं, जिनमें तकरीबन 15 करोड़ भारतीय शामिल हैं। ये जनजातियाँ अब भी सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिये पर मौजूद हैं तथा इसमें से कई जनजातियाँ अपने मूल मानवाधिकारों से भी वंचित हैं। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा उनकी पहचान को लेकर है। भारी संख्या में बुनियादी सुविधाओं का आभाव इनके लिए आज भी चुनौती बना हुआ है। इन समुदायों के सदस्यों के पास पीने का पानी, खाना बनाने का गैस, सर के ऊपर छत, स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। यह समुदाय हेल्थ केयर और एजुकेशन जैसी सुविधाओं से भी कोसो दूर है।
खानाबदोश/घुमंतू जनजातियों के समक्ष अनेक चुनौतियां मौजूद हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहने के साथ साथ, यह समाज देश के किसी भी राज्य के स्थानीय प्रशासन के दुर्व्यवहार का शिकार भी हो रहा है। इन समुदायों के संबंध में प्रचलित गलत और आपराधिक धारणाओं के कारण, यह आज भी स्थानीय प्रशासन व पुलिस द्वारा प्रताड़ित किये जाते हैं। इनके पास कोई सामजिक सुरक्षा कवर भी नहीं है, न ही वे राशन कार्ड के हकदार हैं, और न ही इनका कोई आधार कार्ड होता है, यहाँ तक कि इन्हे लोकतंत्र में वोट देने का अधिकार भी नहीं मिला है।
ट्रूपल इस स्थिति को बदलने के लिए और विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सरकारी तंत्र के साथ साथ सामाजिक नजरिये को भी बदलना चाहता है। ताकि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में करोड़ों की संख्या में फैले इस समुदाय को देश की तरक्की में योगदान देने काबिल और व्यक्तिगत विकास का साक्षी बनाया जा सके।
इसके अंतर्गत:
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक वर्ष 2019 में देश में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के लिए विकास एवं कल्याण बोर्ड (DWBDNCs) का गठन किया गया था। इस कल्याण बोर्ड का गठन, तीन वर्ष के लिये किया गया था, जिसे अधिकतम पाँच वर्ष की अवधि के लिये बढ़ाया जा सकता है। लेकिन आज भी कागजी नामकरण के आलावा कुछ ख़ास नहीं किया गया है। यह समाज अब भी अपनी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहा है और सबसे अजीब बात कि यह अपने हक़ की लड़ाई भी लड़ने के काबिल नहीं है। इसलिए शासन-प्रशासन व आम नागरिकों को इनके हितों के लिए आगे आने की आवश्यकता है। जिससे इन्हे नरक सामान जीवन से बाहर निकालकर एक आदर्श समाज का हिस्सा बनाया जा सके।
खानाबदोश/घुमन्तु जनजाति के लिए करने योग्य कार्य:
– स्थानीय प्रशासन व पुलिस से सुरक्षा
– स्थायी ठिकाना, सामाजिक सुरक्षा कवर, राशन व आधार जैसी मूलभूत सुरक्षा
– वोट देने का अधिकार
– स्पष्ट हो जाति वर्गीकरण, अनुसूचित जाति या ओबीसी में शामिल किया जाए
– जाति प्रमाणपत्र जारी हो
– सरकारी कल्याण कार्यक्रमों का लाभ मिले
हम सोशल मीडिया के माध्यम से घुमन्तु समुदाय के लिए जन समर्थन प्राप्त कर रहे हैं, और सत्ता के जिम्मेदार शीर्ष से कार्यक्रम बनाये जाने का निवेदन कर रहे हैं, जिससे यह समुदाय भी इस समाज का एक मुख्य हिस्सा बन सके।